महाराणा प्रताप नाम सुनते ही मातृभूमि और स्वाभिमान के लिए बलिदान हुए लोगों की याद आती हैं |
महाराणा प्रताप मेवाड़ के महान हिंदू शासक थे |सोलहवीं शताब्दी के राजपूत शासकों में महाराणा प्रताप ऐसे शासक थे |जो अकबर को लगातार टक्कर देते रहे |
जन्म और परिवार :
- महाराणा प्रताप का जन्म सिसोदिया कुल में 9 मई 1540 को कुम्भलगड़ किले में हुआ था |
- उनके पिता का नाम उदयसिह और माता का नाम जयवंनताबाई था |
- उनके तीन छोटे भाई शक्ति सिंह ,विक्रम सिंह और जगमाल सिंह और दो बहन चांद कंवर ,मान कंवर थी|
- उनकी पत्नी का नाम अजबदे था|उनके पुत्र का नाम अमरसिंह था |
ना झुके वह महाराणा ना रूके वो चेतक ¦
महाराणा बनने का सफर :
- महाराणा प्रताप जब चित्तोड़ में थे तब वे महल में काफी कम वक्त बिताते थे | वे ज्यादा वक्त चित्तोड़ की प्रजा और अपने मित्रों के साथ ही बिताते थे | जिससे उन्होंने अपनी प्रजा के साथ मिलकर मेवाड़ को आगे बढ़ाया |जिसके कारण वे मेवाड़ के अगले राणा के उत्तराअधिकरी थे और प्रजा प्रताप को ही राणा बनाना चाहती थी |
- महाराणा प्रताप के चित्तोड़ से जाने के बाद उन्होंने उदयपुर की स्थापना की और उदयपुर को मेवाड़ की नयी राजधानी बनाया |
- कई वर्ष परिश्रम करने के बाद महाराणा प्रताप ने उदयपुर नगर बसाया और राणा उदयसिह को उदयपुर का राणा बनाया गया | इसके बाद सन: 1572 में राणा उदयसिह की मृत्यु के पश्चात महाराणा प्रताप को मेवाड़ का नया राणा बनाया गया |
- बिना महाराणा के हल्दीघाटी का कोई मोल नहीं |
- चेतक एक ऐसा घोडा़ जिसने अपने राणा की जान बचाने के लिए अपनी जान की परवाह नहीं की |
- महाराणा प्रताप चेतक को अपने बेटे से अधिक स्नेह करते थे |
महाराणा प्रताप स्मारक समिति मोती मगरी , उदयपुर |
महाराणा प्रताप का पराक्रम :
हल्दीघाटी का युध्द :
यह युध्द महाराणा प्रताप ने जीता लेकिन उनकी जीत को कुछ पन्नो में ही लिखा है |इस युध्द के दौरान चेतक को हाथी की सुड़ लगाई गई थी ताकी वह एक हाथी दिखे| युध्द में चेतक मानसिह के हाथी पर चढ़ा और महाराणा प्रताप ने मानसिह की ओर भाले से प्रहार किया लेकिन वो भाला हाथी सवार को लगा और हाथी के छटपटाते ही मानसिह हाथी से नीचे गिर गया |उसी वक्त हाथी के पैर में लगी तलवार चेतक के पैर में लगी और खून बहने लगा | यह देख मुगल ने महाराणा प्रताप को चारो ओर से घेर लिया | यह देख झाला मानसिह महाराणा के पास आया और कहा कि आपका जीवित रहना आवश्यक है और आप मुझे अपना मुकुट दीजिए |महाराणा प्रताप के मना करने पर भी झाला मानसिह नहीं माने और महाराणा प्रताप का मुकुट पहन कर मुगलो से लड़ने लगे |फिर मुगल सेना के सिपाहियों से लड़ते लड़ते झाला मानसिह वीरगती को परात हो गए |वही दूसरी ओर महाराणा प्रताप चेतक के साथ काफी दूर जा सुके थे |वही एक नाला आया जिसे चेतक ने एक छलांग में पार कर के महाराणा प्रताप के प्राणो की रक्षा की और अपने प्राण त्याग दिए |
2. दिवेर का युध्द :
राजस्थान के इतिहास में कई युध्द की चर्चा रही लेकिन दिवेर का युध्द का महत्व अधिक है |दिवेर के युध्द से महाराणा प्रताप ने अपने खोये हुए अधिक किलो को फिर से जीत लिया था |इस युध्द को " मेवाड़ की मैराथन " कहा जाता है | कयोंकि इसके बाद महाराणा प्रताप अपने किलो को मुगलो के अधिकार से छुडाते गए |
3. मृत्यु समय :
मृत्यु समय से पहले महाराणा प्रताप के डर से अकबर ने अपनी राजधानी लाहौर को बनाया और 1585 मे मेवाड़ अकबर ग्रहण से मुक्त हो गया | 19 जनवरी 1597 मे अपनी नई राजधानी चावंड में उनकी मृत्यु हो गई |
बिरला मंदिर, दिल्ली में महाराणा प्रताप का शैल चिञ
ना झुके वह महाराणा ना रूके वो चेतक ¦¦
अगर आप को जानकारी अच्छी लगी है तो इसे अपने दोस्तों और अपने बच्चों ,माता, पिता और बाकी लोगो तक पहुंचाए और महान, स्वाभिमानी,और एक आदर्श राणा की बात बताए |
8 Comments
Aacha he lekin puri jankari nhi he aaor likho thoda
ReplyDeleteOk aabi Me likh rha hu first time he to todha slow hu
ReplyDeleteThx for comment
ReplyDeleteJay Rajputana
ReplyDeleteJay Rajputana 🚩🚩
ReplyDeleteJay Jay rajputana
ReplyDeleteJay Jay rajputana
ReplyDeleteJay rajputana 🚩🚩🚩🚩
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